Tagged: Machine Translation, मशीनी अनुवाद
- This topic has 2 replies, 2 voices, and was last updated 2 years, 6 months ago by Suyash Suprabh.
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January 2, 2022 at 8:20 pm #271Suyash SuprabhParticipant
मशीनी अनुवाद के बढ़ते दायरे ने बहुत-से अनुवादकों के मन में कई तरह की आशंकाएँ पैदा कर दी हैं।
कुछ अनुवादक यह मानने लगे हैं कि निकट भविष्य में मानव अनुवादकों की ज़रूरत ही नहीं रहेगी, वहीं ऐसे अनुवादक भी हैं जो मशीनी अनुवाद के कारण अनुवादकों की भूमिका के सीमित होने की आशंका की बात कह रहे हैं।
ऐसे समय में हम सभी को लीक से हटकर सोचने की ज़रूरत है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना कर सकें। सबसे पहले तो यह जानना ज़रूरी है कि भारतीय भाषाओं के अनुवादकों को निकट भविष्य में मशीनी अनुवाद से डरने की ज़रूरत नहीं है। हमें कंपनियों के प्रचार तंत्र के इस झाँसे में नहीं आना चाहिए कि भारतीय भाषाओं में बहुत अच्छा मशीनी अनुवाद हो रहा है। इस झूठ को सामने लाने के लिए हमें सामूहिक सक्रियता के महत्व को समझना होगा। हमें बार-बार उदाहरणों के साथ यह बात साबित करनी होगी कि भारतीय भाषाओं में मशीनी अनुवाद की अच्छी गुणवत्ता वाली बात का यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं है।
क्या आप मुझसे सहमत हैं?
January 3, 2022 at 10:39 am #274Siddhartha NeerParticipantसबसे पहले, इस नेक पहल के लिए सुयश जी और सभी सदस्यों को दिल से बधाई एवं शुभकामनाएं!!
हमारी संस्कृति में ‘भाषा बहता नीर है’। दुनिया की किसी भी भाषा में जब तक नए शब्दों का सृजन होता रहेगा, मशीनें अपनी अर्थवत्ता खोती रहेंगी। इसे यूं देखा जा सकता है कि अगर हम मशीनों का आज से पांच सौ साल पहले की हिंदी रटा दें तो उन मशीनों का आज की हिंदी समझने, अनुवाद करने में खासा मुश्किल आएगी। फिलहाल, कितनी भी उन्नत तकनीक क्यों न हो, उसके लिए किसी भी भाषा के सभी प्रारूपों, अर्थों को आत्मसात करना संभव नहीं है। ‘गुड मॉर्निंग’, ‘सुप्रभात’ जैसे स्थायी अर्थ वाले वाक्यों का मशीनें जरूर दशकों तक ‘सही’ अनुवाद दे सकें, लेकिन भाषा के अभिधा, लक्षणा और व्यंजना वाले गुणों से मशीनें कहां तक, और कब तक संवाद कर पाएंगी?
आपने ठीक कहा कि हमें डरते की जरूरत नहीं है। लेकिन इससे जरूरी सच यह है कि हम मशीनी अनुवाद वाली कंपनियों के भ्रामक प्रचार का पर्दाफाश करें। यही चुनौती ज्यादा बड़ी दिखती है, क्योंकि ट्रक भर—भर के शब्दों का चंद घंटों में अनुवाद कर देने वाली मशीनें अगर अस्तित्व में आई हैं, तो अपनी जरूरत को साबित भी कर रही हैं। आनलाइन व्यापार वाली बड़ी कंपनियों के मार्केटिंग कंटेंट, उनके प्रोडक्ट के डिस्क्रिप्शन कई—कई भाषाओं में एक साथ अनुवाद हो रहे हैं। उनकी इस जरूरत को पूरा कर पाने की जिम्मेदारी एक अकेला फ्रीलांसर, या फ्रीलांस करने वाले लोगों के पांच—दस का समूह भी नहीं ले सकता है। ऐसी तमाम नई सामग्री है जो थोक में अनुवाद के लिए उपलब्ध है। इस सामग्री को हम अकेले नहीं संभाल सकते। और अगर हम कंपनी बनते—बनाते हैं तो हमारी भी वही गति होगी जो शोषण करने वाली दूसरी कंपनियों की है।
इन स्थितियों में, हम इन मशीनों का मुकाबला करें तो कैसे? गुणवत्ता में हम निसंदेह मशीनों से बेहतर हो सकते हैं, लेकिन हम ‘थोक के भाव’ वाले काम कैसे करेंगे। इस प्लेटफॉर्म के तहत अगर हम चटपट अनुवाद देने वाली कंपनियों के मशीनी अनुवाद की पोल खोलना शुरू कर भी दें तो क्या हमें इससे कुछ हासिल होने जा रहा है? यह प्रश्न मैं किसी ‘निरर्थकता—बोध’ में नहीं उठा रहा, बल्कि उस बिंदु को रेखांकित करना चाहता हूं कि हमारे इस कदम का अभीष्ट क्या होना चाहिए। आए दिन गूगल, अमेजन अपने ‘कुतर्की’ अनुवाद से जग हंसाई कराते रहते हैं। लेकिन इससे उनका बिगड़ क्या रहा है?
मेरे देखने में, कुशल स्वतंत्र अनुवादक की मांग घटी है। वह या तो बिचौलिया अनुवाद कंपनियों की शर्तें मानकर रटे—रटाये कार्य में लगा हुआ है, या बड़ी कंपनियों के मशीनी अनुवादों का अपेक्षाकृत बेहतर दर पर ‘रीव्यू’ कर रहा है।
निश्चित रूप से, इनके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है, लेकिन इस कार्य में अपनी सामूहिकता की भूमिका, कार्यशैली को रेखांकित करना होगा। शायर महेश अश्क का दो पंक्तियां —
अपने—अपने हथियारों की दिशा तो कर ली जाए ठीक।
वरना वार कहीं होता है, लोग कहीं कट जाते हैं।(असंपादित)
March 8, 2022 at 7:55 pm #328Suyash SuprabhParticipantआपने मशीनी अनुवाद के ख़तरों के बारे में जो कुछ लिखा है उससे मैं सहमत हूँ।
असहमति बस इस बात से है कि मशीनी अनुवाद की सीमाओं पर बात करने से हमें कुछ हासिल नहीं होगा।
भ्रामक प्रचार ने तो बड़े पद पर बैठे लोगों के दिमाग में यह बात डाल दी है कि भारतीय भाषाओं में क़ानून, शिक्षा आदि से जुड़े पाठ का आसानी से मशीनी अनुवाद किया जा सकता है। अगर हमारे प्रयासों से मशीनी अनुवाद की गुणवत्ता पर बहस शुरू होती है या लोग ग़लत अनुवाद से होने वाले नुक़सान के प्रति जागरूक बनते हैं, तो इसे हमारी सफलता के रूप में ही देखा जाएगा।
हर किसी के काम करने का अपना अलग तरीक़ा होता है। कोई लेख लिखकर अपनी बात रखता है तो कोई वीडियो बनाकर। इंटरनेट ने हमें आज कई मंच उपलब्ध कराए हैं, लेकिन क्या हम अपने फ़ायदे से जुड़े मसलों पर भी मुखर हो पाते हैं? इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जो अनुवादक हर दिन न जाने कितने शब्दों की गहराई में जाते हैं वही तब मौन हो जाते हैं जब बात उनके हितों से जुड़ी होती है।
आपकी यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें अपनी सामूहिकता की भूमिका और कार्यशैली को रेखांकित करना होगा। क्या आप इससे जुड़ी कोई सलाह दे सकते हैं?
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