गुणवत्ता के नाम पर होने वाले शोषण से बचें

आजकल अनुवाद कंपनियों द्वारा अनुवाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए भाषिक गुणवत्ता आश्वासन (Linguistic Quality Assurance) नाम की यांत्रिक प्रक्रिया का बहुत प्रयोग किया जा रहा है, जिसे संक्षेप में एलक्यूए भी कहते हैं। आप किसी गणितीय गणना की यंत्र द्वारा जांच कर सकते हैं। विज्ञान के अनेक विषयों में सूत्रों की सटीकता की जांच भी यंत्रों द्वारा संभव है। लेकिन कुछ निश्चित एल्गोरिदम फ़ीड करके किसी कंप्यूटर प्रोग्राम द्वारा अनुवाद की गुणवत्ता की जांच सैद्धांतिक रूप से ही गलत है। विशेष रूप से हिंदी भाषा के लिए तो इनका कोई सार्थक उपयोग नहीं है।

एलक्यूए के लिए जिस टूल का उपयोग किया जाता है उसमें गुणवत्ता के ऐसे-ऐसे मानदंडों का समावेश किया जाता है कि किसी भी अनुवाद के उपरांत क्यूए रन करने पर आपको 500-600 क्यूए चेतावनियां मिलना आम बात है। इनमें 70-80 प्रतिशत चेतावनियां वर्तनी को लेकर होती हैं। कारण सीधा सा है, किसी भी टूल में सही वर्तनी वाले हिंदी शब्दों का कोई कोश नहीं भरा होता है। इसलिए हिंदी के हर शब्द की वर्तनी गलत ही बताई जाती है। इसी प्रकार यदि लिंग-भेद के कारण किसी अंग्रेजी वाक्य के हिंदी अनुवाद में एक बार पुल्लिंग क्रिया और दूसरी बार स्त्रीलिंग क्रिया का प्रयोग होता है तो क्यूए टूल द्वारा उसे असंगत अनुवाद करार दे दिया जाता है।

ये कुछ उदाहरण तो इस प्रक्रिया और प्रयुक्त टूल की निरर्थकता के संबंध में दिए गए हैं। लेकिन हम अनुवादकों के लिए कहीं बड़ा विषय है इस एलक्यूए प्रक्रिया द्वारा अनुवादकों का शोषण! जैसा कि सभी जानते हैं, अनुवाद की पारंपरिक प्रक्रिया में अनुवाद के बाद प्रूफरीडिंग का चरण आता है। प्रायः प्रूफरीडिंग की दर अनुवाद दर की आधी होती है। जैसे, यदि अनुवाद दर 2 रुपये प्रति शब्द है तो प्रूफरीडिंग की दर 1 रुपया प्रति शब्द होगी।

लेकिन अनुवाद कंपनियों ने इस एलक्यूए की प्रक्रिया को लाकर प्रूफरीडिंग चरण को समाप्त कर दिया है। जहां प्रूफरीडिंग में प्रति घंटा 500-600 शब्दों की प्रूफरीडिंग अपेक्षित हुआ करती थी, अब एलक्यूए में 1000 से लेकर 6000 शब्द प्रति घंटा का मानदंड अलग-अलग कंपनियों द्वारा तय किया गया है। औसतन 3000 शब्द प्रति घंटा भी मानें और अनुवादक की प्रति घंटा दर 500 रुपये है, तो उसे एलक्यूए के लिए प्रति शब्द 17 पैसे की दर से भुगतान किया जाएगा। इस आलेख के माध्यम से मेरा यही कहना है कि अनुवाद कंपनियों की घातक चालों में न फंसें। एक तो किसी भी भाषिक गुणवत्ता या संपादन या समीक्षा के लिए प्रति घंटा दर 1000 रुपये से कम न रखें दूसरे प्रति घंटा शब्द सीमा किसी भी स्थिति में 1000 शब्द प्रति घंटा से अधिक स्वीकार न करें।


लेखक : विनोद शर्मा

बीएसएनएल में सेवारत रहते हुए 1991 में अंग्रेजी में एमए किया, लगातार 1993 में हिंदी में एमए किया फिर 1995 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से अनुवाद में पीजी डिप्लोमा किया। 1995 से 1997 तक शौकिया अनुवाद कार्य किया। जुलाई 1997 से विधिवत पेशेवर अनुवादक के रूप में कार्य शुरू किया, लेकिन विकीपीडिया, रोजेटा फाउंडेशन, ट्रांलेटर्स विदाउट बॉर्डर्स आदि के लिए स्वैच्छिक अनुवाद भी चलता रहा। 2005 से कैट टूल्स से परिचय हुआ। सबसे पहले एसडीएलएक्स, फिर वर्डफास्ट पर काम करना शुरू किया। उसके बाद तो अनुवाद यात्रा चलती रही। नए-नए टूल्स शामिल होते रहे, नए-नए विषयों और क्षेत्रों में, नए-नए फाइल प्रकारों से होते हुए ये सफर जो चला तो चलता ही रहा। 2010 से 2020 तक दबिगवर्ड कंपनी के लिए गूगल रिव्यूअर के रूप में नियमित कार्य किया।

An Engineer with a passion for languages went on to complete Masters both in English and Hindi in 1991 and 1993 respectively. He did not stop here, completed a PG Diploma in Translation from IGNOU in 1995. Started with amateur translation for Wikipedia, Rosseta Foundation and Translators without Borders. Turned professional in 1997 and never stopped. Started using CAT tools in 2005 with SDLX, Wordfast, Idiom and since then no looking back. Worked as Google Reviewer through thebigword from 2010 to 2020. Specialization in Medical, Legal and Technical fields. Working mostly with foreign companies only.

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