अनुवाद की चुनौतियां

स्टोरीवीवर की कहानियों का अनुवाद हमेशा चुनौती साथ लाता है : हमें ठीक-ठीक मालूम नहीं होता कि कहानी का पाठक दुनिया के किस हिस्से में है, उसकी आयु या शैक्षणिक पृष्ठभूमि क्या है, वह प्रस्तुत पाठ को किस उद्देश्य से

व्यवहार से सिद्धांत और सिद्धांत से व्यवहार की ओर

अनुवाद के क्षेत्र में लगभग एक दशक तक सक्रिय रहने के बाद इसके सैद्धांतिक पक्ष को ठीक से समझने में मेरी दिलचस्पी जगी। सबसे पहले तो यह सवाल दिमाग़ में आया कि अनुवाद करते समय हम भाषा, वर्तनी आदि से

अनुवाद : विविध प्रसंग

अनुवाद सदा से मनुष्यों के बीच संप्रेषण का आधार रहा है। भारत जैसे बहुभाषी देश में औसत रूप से चैतन्य लोग एकाधिक भाषाओं में सामान्य संवाद करते रहे हैं। यहां घरों में एकाधिक भाषाओं का उपयोग भी व्यापक रहा है

अनुवाद के अनुभव

अपने प्रारंभिक अनुवाद मैंने राज्य संदर्भ केंद्र, जयपुर (प्रौढ़ शिक्षा) के लिए किए थे, केंद्र से छपने वाली पत्रिका ‘अनौपचारिका’ के लिए। इसके पहले कुछ अनुवादों से मेरा परिचय एक पाठक के रूप में ही हुआ था। याद आता है

भाषा को एक ऐसा दरिया होने की ज़रूरत है जो दूसरी ज़बानों को भी ख़ुद में समेट सके

भले ही ग़लत उच्चारणों के साथ, मगर क्या इन शब्दों के बिना हमारी जवानी पूरी हो सकती है? कॉलेज के दिनों में “बेवफ़ाई” का रोना, घर बनवाने में “मज़दूरों” की “मेहनत”, “मजबूरी” में मैगी खाना, जॉब के चक्कर में “जुदाई”

करियर के रूप में अनुवाद को क्यों चुनें?

सदियों से अनुवाद ज्ञान के आदान-प्रदान का माध्यम रहा है। मानव सभ्यता के विकास में अनुवाद का विशेष महत्व रहा है। आज वैश्वीकरण के इस दौर में अनुवाद का महत्व और उसकी आवश्यकता कई गुणा बढ़ गई है। दुनिया भर

अनुवाद – अर्थ और अनर्थ के बीच

अनर्थ हो गया है अर्थ की अभ्यर्थना में, मनुष्य खो गया है मनुष्य की जल्पना में। केदारनाथ अग्रवाल की इन पंक्तियों की सच्चाई बतौर अनुवादक भले ही सभी आसानी से समझें या न समझें, लेकिन समस्या का शुभारंभ तो तभी

अनुवादक बनाम योग्यता

इस तथ्य से सभी बखूबी परिचित हैं कि भारत में अनुवाद क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा हुआ है। इसके अनेक कारण हैं। देश की सरकारों का अनुवाद के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया भी एक बड़ा कारण है। हम यह भी जानते हैं कि