मशीनी अनुवाद के बढ़ते दायरे ने बहुत-से अनुवादकों के मन में कई तरह की आशंकाएँ पैदा कर दी हैं।
कुछ अनुवादक यह मानने लगे हैं कि निकट भविष्य में मानव अनुवादकों की ज़रूरत ही नहीं रहेगी, वहीं ऐसे अनुवादक भी हैं जो मशीनी अनुवाद के कारण अनुवादकों की भूमिका के सीमित होने की आशंका की बात कह रहे हैं।
ऐसे समय में हम सभी को लीक से हटकर सोचने की ज़रूरत है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना कर सकें। सबसे पहले तो यह जानना ज़रूरी है कि भारतीय भाषाओं के अनुवादकों को निकट भविष्य में मशीनी अनुवाद से डरने की ज़रूरत नहीं है। हमें कंपनियों के प्रचार तंत्र के इस झाँसे में नहीं आना चाहिए कि भारतीय भाषाओं में बहुत अच्छा मशीनी अनुवाद हो रहा है। इस झूठ को सामने लाने के लिए हमें सामूहिक सक्रियता के महत्व को समझना होगा। हमें बार-बार उदाहरणों के साथ यह बात साबित करनी होगी कि भारतीय भाषाओं में मशीनी अनुवाद की अच्छी गुणवत्ता वाली बात का यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं है।
क्या आप मुझसे सहमत हैं?
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